पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम

Chetna Mantra

नित्य साधना क्रम

नित्य साधना क्रम

सर्वप्रथम, स्नान के उपरान्त स्वच्छ धुले कपडे़ धारण करके अपने पूजन स्थल में स्थापित शक्तियों को प्रणाम करते हुए आसन पर बैठें। सामने गुरु एवं “माँ” तथा अन्य सभी सहायक शक्तियों की छवियों को साफ धुले हुए गीले कपडे़ से (स्नान कराने का भाव लेते हुए) पोंछकर साफ करें एवं कुंकुम का तिलक लगायें तथा पुष्प समर्पित करके अगरबत्ती या धूप और दीप प्रज्जवलित करें। तत्पश्चात्, नीचे दिये हुए प्रत्येक मंत्र का तीन-तीन बार तथा गुरुमंत्र एवं “माँ” के चेतनामंत्र का पाँच-पाँच बार उच्चारण करें:
        1- माँ
        2- ॐ
        3- सोऽहं
        4- ॐ हं हनुमतये नमः
        5- ॐ भ्रं भैरवाय नमः
        6- ॐ गं गणपतये नमः
        7- ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः
        8- ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः

मंत्रोच्चारण क्रम पूर्ण करने के पश्चात्, सर्वप्रथम श्री शक्तिपुत्र जी गुरुचालीसा का पाठ करें। तत्पश्चात्, श्री दुर्गाचालीसा का पाठ पूर्ण करें ।

श्री शक्तिपुत्र जी गुरुचालीसा

दोहा-  प्रणवहुँ गुरुवर के चरण, श्री शक्तिपुत्र महाराज ।
        शरण चरण में दीजिये, सफल होयं सब काज ।।

जय हो शक्तिपुत्र वरदानी ।    कृपा करो मोहे बालक जानी ।।
‘माँ’ की मधुमय ममता तुम हो । दुःखहर्ता इस जग के तुम हो ।।
मात-पिता प्रिय बंधु तुम हो । मेरी धन-सम्पत्ति भी तुम हो ।।
जग में छाया था अंधियारा । दिखता था ना कोइ सहारा ।।
धर्म बना था एक छलावा । तंत्र-मंत्र था एक भुलावा ।।
माया मोह सकल तन छाया । भूले अपना और पराया ।।
तुमने सच्ची राह दिखाई । भवसागर में नाव बताई ।।
तुम हो जगदम्बे के प्यारे । दुर्गे माँ का योग दुलारे ।।
युग में नई चेतना लाये । तुमने ‘माँ’ के दर्शन पाये ।।
‘माँ’ है प्रथम शब्द प्रकृति का । यही नाम नाशक विकृति का ।।
माँ अम्बे की शक्ति पा ली । भक्ति की नयी राह निकाली ।।
योग तपस्या के अनुसारी । देखें सकल दु:खित नर-नारी ।।
शतअष्ठी यज्ञ का प्रण ठाना । जासे क्षार होय दु:ख नाना ।।
जनकल्याण होय सुखकारी । तुम निर्बल-निर्धन हितकारी ।।
याचक दु:खिया जो कोई आवे । अपने मन की आशा पावे ।।
रोग-शोक-भय निर्धनताई । दूर रहे हमसे कठिनाई ।।
हमको दीजै प्रभु धन-धाना । यश-बल दीजै औ सुख नाना ।।
देना हमको मान सुहाना । निज बल से बलवान् बनाना ।।
अंधकार में दिया बता दो । माँ दुर्गे की दया दिला दो ।।
तुम्हें छोड़ युग के निर्माता । कहाँ झुकायें अपना माथा ।।
तुम ही गुरु परम श्रद्धेया । नित नव बरसाओ स्नेहा ।।
बैठे हम झोली फैलाये । तुम बिन ज्ञान कहाँ से पायें ।।
होय असंभव संभव कर दे । शक्ति-भक्ति का हमको वर दे ।।
सुना गुरु जगदम्ब मिलाते । दर्शन की हम आस लगाते ।।
दु:खिया मन की डोर संभारो । भवसागर से हमें उबारो ।।
हरा-भरा यह घर हो सारा । गूँजे इसमें नाम तुम्हारा ।।
रात-दिना हम बढ़ते जायें । धन यश कीरत सुख मुस्कायें ।।
शक्तिजल आशीष तुम्हारा । रोग-शोक का मेटनहारा ।।
तन-मन के हर रोग नसावे । श्रद्धामय जो कोई पावे ।।
गुरुवार प्रिय दिवस तुम्हारा । रहे व्रती नासै कलि भारा ।।
हमको अपनी राह चलाना । करुणामय निज रूप दिखाना ।।
जब हम भय संकट में आवें । ध्यान आपका हमें बचावे ।।
प्रेम तेरा हो मन में अपने । देखें बस तेरे ही सपने ।।
राह से तेरी हट न जायें । चाहे कष्ट हजारों आयें ।।
अंत समय जब आए हमारा । अधरों पर हो नाम तुम्हारा ।।
जब यह छूटे जग की काया । मिले जगत् जननी की छाया ।।
श्री शक्तिपुत्र चालीसा गावे । दु:ख-भय-शोक निकट नहिं आवे।।
यह सत बार पाठ कर जोई । दया गुरु संग “माँ” की होई ।।
यह है शिष्य निपट अज्ञानी । करहु कृपा गुरु संग भवानी ।।
मन मूरख है शरण में लीजै । अपनी भक्ति शक्ति कुछ दीजै ।।

दोहा- भीतर बाहर सब जगह, तेरा ही विस्तार ।
       नाम तेरा ही गूँजता, युग चेतन करतार ।।


श्री दुर्गाचालीसा

नमो नमो दुर्गे सुखकरनी । नमो नमो अम्बे दु:खहरनी।।
निरंकार है ज्योति तुम्हारी । तिहुं लोक फैली उजियारी ।।
शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ।।
रूप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ।।
तुम संसार शक्तिलय कीन्हां । पालन हेतु अन्न-धन दीन्हां ।।
अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ।।
प्रलयकाल सब नाशनहारी । तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ।।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा-विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ।।
रूप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा ।।
धरा रूप नरसिंह को अम्बा । परगट भई फाड़कर खम्भा ।।
रक्षा करि प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं । श्री नारायण अंग समाहीं ।।
क्षीर सिंधु में करत विलासा । दयासिंधु दीजै मन आसा ।।
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ।।
मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ।।
श्री भैरव तारा जगतारिणी । छिन्न भाल भव दुःखनिवारिणी ।।
केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ।।
कर में खप्पर खड्ग विराजै । जाको देख काल डर भाजै ।।
सोहै अस्त्र और त्रियशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ।।
नगरकोट में तुम्हीं विराजत । तिहुं लोक में डंका बाजत।।
शुम्भ-निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ।।
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ।।
रूप कराल काली को धारा । सेन सहित तुम तेहि संहारा ।।
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब । भई सहाय मातु तुम तब-तब ।।
अमरपुरी औरों सब लोका । तव महिमा सब रहें अशोका ।।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ।।
प्रेम भक्ति से जो नर गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवै ।।
ध्यावै तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताको छुटि जाई ।।
योगी-सुर-मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ।।
शंकर आचारज तप कीन्हों । काम-क्रोध जीति सब लीन्हों ।।
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ।।
शक्ति रूप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछितायो ।।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ।।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन्ह विलम्बा ।।
मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ।।
आशा तृष्णा निपट सतावें । मोह-मदादिक सब विनसावें ।।
शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरहुँ एकचित तुम्हें भवानी ।।
करहु कृपा हे मातु दयाला । ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला ।।
जब लग जियौं दयाफल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ।।
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ।।
देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।। करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।।


श्री दुर्गाचालीसा पाठ क्रम को पूर्ण करने के पश्चात्, निम्नलिखित श्लोकों का क्रमशः उच्चारण करें-

श्लोक

ॐ गजाननं भूतगणाधिसेवितं, कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम् ।
उमासुतं शोक विनाशकारकं, नमामि विघ्नेश्वर पाद्पंकजम् ।।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्रीगुरुचरणकमलेभ्यो नमः ।।

या देवी सर्वभूतेषु, मातृरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः ।।

अब, दोनों हाथों में आरती थाल लेकर पूर्ण एकाग्रता से प्रत्येक पंक्ति पर ध्यान देते हुए श्री सद्गुरुदेव जी की आरती एवं माता भगवती जगज्जननी जगदम्बा जी की आरती, अपने आसन में ही बैठकर पूर्ण करें।

आरती श्री सद्गुरुदेव जी की

जय गुरुदेव दयानिधि, दीनन हितकारी ।
जय जय मोहविनाशक, भव बंधनहारी ।। ॐ जय …
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, गुरु मूरत धारी ।
वेद पुराण बखानत, गुरु महिमा भारी ।। ॐ जय …
जप तप तीरथ संयम, दान विविध कीजै ।
गुरु बिन ज्ञान न होवे, कोटि यतन कीजै ।। ॐ जय …
माया मोह नदी जल, जीव बहें सारे ।
नाम जहाज बैठाकर, गुरु पल में तारे ।। ॐ जय …
काम क्रोध मद मत्सर, चोर बडे़ भारी ।
ज्ञान खड्ग दे कर में, गुरु सब संहारे ।। ॐ जय …
नाना पंथ जगत् में, निज निज गुण गायें ।
सबका सार बताकर, गुरु मारग लायें ।। ॐ जय …
गुरु चरणामृत निर्मल, सब पातकहारी ।
वचन सुनत श्री गुरु के, सब संशयहारी ।। ॐ जय …
तन मन धन सब अर्पण, गुरु चरणन कीजै ।
ब्रह्मानन्द परमपद, मोक्ष गती लीजै ।। ॐ जय …


आरती श्री माता जी की

जगजननी जय जय, माँ जगजननी जय जय ।
भयहारिणि, भवतारिणि, भवभामिनि जय जय ।।

तू ही सत-चित-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा ।
सत्य सनातन सुन्दर, पर-शिव-सुर-भूपा ।। माँ जग …
आदि अनादि अनामय, अविचल अविनाशी ।
अमल अनन्त अगोचर, अज आनंदराशी ।। माँ जग …
अविकारी अघहारी, अकल कलाधारी ।
कर्ता विधि भर्ता हरि, हर संहारकारी ।। माँ जग …
तू विधि वधू रमा तू, उमा महामाया ।
मूल प्रकृति विद्या तू, तू जननी जाया ।। माँ जग …
राम-कृष्ण तू सीता, ब्रजरानी राधा ।
तू वाञ्छाकल्पद्रुम, हारिणी सब बाधा ।। माँ जग …
दस विद्या नव दुर्गा, नाना शस्त्रकरा ।
अष्टमातृका योगिनि, नव-नव रूप धरा ।। माँ जग …
तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू ।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू ।। माँ जग …
सुर-मुनि-मोहिनी सौम्या, तू शोभाधारा ।
विवसन विकट स्वरूपा, प्रलयमयी धारा ।। माँ जग …
तू ही स्नेह सुधामयि, तू अति गरलमना ।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थितना ।। माँ जग …
मूलाधार निवासिनि, इह-पर-सिद्धप्रदे ।
कालातीता काली, कमला तू वरदे ।। माँ जग …
शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी ।
भेदप्रदर्शनि वाणी, विमले! वेदत्रयी ।। माँ जग …
हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे ।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे ।। माँ जग …
निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै ।
करुणा कर करुणामयि, चरण-शरण दीजै ।। माँ जग …

जगजननी जय जय, माँ! जगजननी जय जय ।
भयहारिणि भवतारिणि, भवभामिनि जय जय ।।


आरती का क्रम पूर्ण होने के पश्चात्, ज्योति (दीपक या आरती थाल) के चारों ओर जल छिड़ककर आचमन समर्पित करें । तत्पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर (इस समस्त पूजन क्रम में यदि कोई त्रुटि हो गई हो, तो यही भाव लेते हुए) ‘माँ’ एवं गुरुवर की छवि के समक्ष निम्न श्लोक के माध्यम से क्षमायाचना करते हुए समर्पण स्तुति सम्पन्न करें –

क्षमायाचना

या देवी सर्वभूतेषु क्षमारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः ।।

समर्पण स्तुति

अब सौंप दिया इस जीवन का, सब भार तुम्हारे हाथों में ।
है जीत तुम्हारे हाथों में, और हार तुम्हारे हाथों में ।। अब …

मेरा निश्चय है बस एक यही, एक बार तुम्हें पा जाऊं मैं ।
अर्पण कर दूं दुनियाभर का, सब प्यार तुम्हारे हाथों में ।। अब …

जो जग में रहूं तो ऐसे रहूं, ज्यों जल में कमल का फूल रहे ।
मेरे सब गुण-दोष समर्पित हों, भगवती तुम्हारे चरणों में ।। अब …

यदि मानव का मुझे जन्म मिले, तो तव चरणों का पुजारी बनूं ।
इस पूजक की इक-इक रग का, हो तार तुम्हारे हाथों में ।। अब …

जब जब संसार का कैदी बनूं, निष्काम भाव से कर्म करूं ।
फिर अंत समय में प्राण तजूं, साकार तुम्हारे हाथों में ।। अब …

मुझमें तुझमें बस भेद यही, मैं नर हूँ तुम नारायणि हो ।
मैं हूं संसार के हाथों में, संसार तुम्हारे हाथों में ।। अब …


समर्पण स्तुति पूर्ण करने के पश्चात्, निम्न जयघोष करें –

परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की- जय !
माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बे मातु की- जय !
पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम धाम की- जय !

इसके उपरान्त, पाँच-पाँच बार ‘माँ’ एवं ‘ॐ’ का क्रमिक उच्चारण (अर्थात् एक बार ‘माँ’ फिर एक बार ‘ॐ’ का) का उच्चारण पूर्ण करें ।

ध्यान क्रम- उच्चारण पूर्ण करने के पश्चात्, दो मिनट के लिये अपने नेत्रों को बन्द कर दोनों भौहों के मध्य स्थिति आज्ञाचक्र पर ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करते हैं । ध्यानक्रम के समय हमें माता भगवती की ममतामयी छवि या परम पूज्य सद्गुरुदेव जी की छवि को अपने अन्तःकरण में स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये या फिर पावन धाम ‘पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम’ का ध्यान किया जाना चाहिये और धीरे-धीरे मन को पूर्णतः विचारशून्यता की स्थिति में लाने का प्रयास करना चाहिए।

नोट- सामान्यतः ध्यान के क्रम के लिये प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम पंद्रह मिनट का समय देना हितकारी सिद्ध होगा। यह क्रम आरती के समय से अलग भी कभी किसी अवस्था में बैठे हुए, लेटकर या रात्रि विश्राम में जाने से पूर्व किया जा सकता है।

ध्यानक्रम पूर्ण करने के पश्चात्, पांच-पांच बार क्रमशः गुरुमंत्र ‘ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः’ एवं माँ के चेतनामंत्र ‘ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः’ का उच्चारण करें, जिससे सम्पन्न किये गये इस सम्पूर्ण क्रम की ऊर्जा को अपने अन्दर समाहित कर सकें।

तत्पश्चात् निम्नलिखित जयघोषों को पूर्ण करें –

धर्मसम्राट युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की– जय!
माता भगवती आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बे मातु की– जय !
पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम धाम की– जय !
हनुमत देव की – जय !
भैरव देव की – जय !
गणपति देव की – जय !
गौमाता की- जय!
गंगा मैया की – जय!

सच्चे दरबार की – जय !
धर्म की – जय हो !
अधर्म का – नाश हो !
प्राणियों में – सद्भावना हो !
विश्व का – कल्याण हो !
जन-जन में – ‘माँ’ की चेतना हो !
भगवती मानव कल्याण संगठन – सत्यधर्म का रक्षक है।
सच्चे दरबार की – जय !
नित्य साधना क्रम के अन्त में शान्ति पाठ करें –

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।


आरतीक्रम को सम्पन्न करने के पश्चात् मंच पर स्थापित समस्त शक्तियों को पूर्ण नमन भाव से प्रणाम करते हुए तीन बार शंखध्वनि करें।

विशेष नोट- यह सम्पूर्ण नित्य साधनाक्रम परम पूज्य सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा निर्देशित है। पूर्ण नशामुक्त, मांसाहारमुक्त एवं चरित्रवान जीवन जीते हुए यदि यह क्रम श्री गुरुदेव जी तथा माता भगवती के चरणों में पूर्ण विश्वास एवं श्रद्धा भाव रखकर नित्यप्रति सम्पन्न किया जाये तथा अपने जीवन की विषमताओं एवं न्यूनताओं को दूर करने का सतत प्रयास किया जाये, तो सर्वथा हितकारी एवं पूर्ण लाभप्रद सिद्ध होगा तथा किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति में पूर्ण सहायक होगा। यदि किसी के पास बहुत अधिक समय का अभाव हो, तो पूज्य सद्गुरुदेव जी का गुरुमंत्र ‘ॐ शक्तिपुत्राय गुरुभ्यो नमः’ एवं ‘माँ’ के विशिष्ट चेतना मंत्र ‘ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः’ का किसी भी समय एवं किसी भी अवस्था में जाप करते रहना चाहिये। और, यदि आपके पास पर्याप्त समय हो, तो किसी आसन पर बैठकर मंत्रो का जाप किसी माला से कम से कम एक माला या जितनी बार सम्भव हो, करें या बगैर माला के भी जाप किया जा सकता है।

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