पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम

कृषि व उद्यान संवर्धन

सर्वविदित है कि सद्गुरुदेव जी महाराज के सिद्धाश्रम आगमन के पूर्व सिद्धाश्रम की यह धरती अंधियारी के नाम से जानी जाती थी, जो कि पूर्ण रूप से बंजर और भयावह थी। दूर तक फैली पथरीली ऊंची-नीची अनगढ़, कंटीली झाड़ियों और हिंसक जानवरों से भरी यह भूमि, किसी भी प्रकार के उत्पादन और सृजन की कल्पना से परे थी।

यह भूमि आज भी पथरीली है, किंतु इसमें अब मिट्टी की बहुलता है। सद्गुरुदेव जी महाराज की उपस्थिति से यहां की मिट्टी में भी उर्वरता का गुण विकसित हुआ है, जहां से सुंदर पुष्प खिलकर यहाँ के वातावरण को सुवासित कर रहे हैं। सिद्धाश्रम में अब कई स्थानों पर पुष्प उद्यान विकसित हैं, जहाँ के पुष्प, नित्यप्रति के पूजनक्रमों में प्रयुक्त होते हैं।

पुष्पउद्यानों एवं बाग-बगीचों के साथ सद्गुरुदेव जी महाराज के द्वारा सिद्धाश्रम में कृषिकार्य को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। यहाँ निर्मित, व्यवस्थित और चौड़े मेढ़ों से युक्त खेतों में, उपयोगी फसलों और सब्जियों की खेती की जाती है। गन्ना, हल्दी, अरहर, सरसों, मूंगफली, चना इत्यादि के साथ ही आश्रम की आवश्यकता के अनुरूप दैनिक उपयोग में आने वाली सभी प्रकार की सब्जियों का भी पर्याप्त मात्रा में उत्पादन होता है। चारों दिशाओं में हुए बोरवेल से उद्यानों एवं खेतों में सिंचन व्यवस्था के लिए जल सदैव उपलब्ध रहता है, जिससे फसलों एवं सब्जियों के पैदावार की क्रमिक व्यवस्था बनी रहती है। सिद्धाश्रम में अनेक मजदूर कृषिकार्य में संलग्न रहते हैं, ताकि खेतों को व्यवस्थित रखते हुए कृषिकार्य को सुचारू रूप से संचालित किया जा सके। फसल को पूर्णतया हानिरहित रखने के लिए सिद्धाश्रम में स्थित त्रिशक्ति गोशाला के गोबर से निर्मित खाद का ही खेतों में उपयोग किया जाता है।

वैसे तो जनसामान्य के लिए शुद्ध आहार की ही आवश्यकता है, किन्तु जब जीवन धार्मिक- अध्यात्मिक गतिविधियों व साधनाओं में रत हो, तब व्यक्ति के लिए शुद्ध और संतुलित आहार अनिवार्य हो जाता है।

छान्दोग्योपनिषद में लिखा है-

आहार सत्यशुद्धिः सत्वसुद्धौ ध्रुवा।
स्मृति: स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्धिनां विप्रमोक्षः॥

अर्थात् “जब भोजन शुद्ध होता है, तब मन शुद्ध होजाता है। जब मन शुद्ध होता है, तब मन निर्मल और निश्चयी बनता है। पवित्र और निश्चय मन के द्वारा मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करते हैं।”

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