पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम

Chetna Mantra

त्रिशक्ति जगदम्बा महामंत्र

त्रिशक्ति जगदम्बा सर्वार्थ सिद्धि महामंत्र
श्री त्रिशक्ति चेतना मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै,
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै, ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।

-परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज

माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की साधना-उपासना के क्रम में, विश्व अध्यात्म जगत् का यह एक ऐसा महत्त्वपूर्ण महामंत्र है, जिसके माध्यम से सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की सभी शक्तियों के प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त किये जा सकते हैं। यह महामंत्र शक्ति साधना में सर्वोपरि सात मंत्रों-स्तोत्रों में से एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है। यह माता भगवती दुर्गा जी के तीनों स्वरूपों माता महासरस्वती, माता महालक्ष्मी व माता महाकाली की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है।
उपर्युक्त मंत्र के विषय में समाज ने आज तक पढ़ा होगा, सुना होगा या कुछ लोगों के द्वारा जाप भी किया गया होगा। मगर, आज तक इस मंत्र की जाप-साधना का क्रम व विधान पूर्णतया गोपनीय रहा है। विश्व आध्यात्मिक जगत् मेें हलचल मचा देने वाले इस मंत्र के विषय में विस्तार से विवरण या साधना विधि किसी पुस्तक में उपलब्ध नहीं है। दुर्गा सप्तशती व कुछ अन्य पुस्तकों में इस मंत्र के विषय में संक्षिप्त सी जानकारी दी गई है।
इस मंत्र को नवार्ण मन्त्र से भी संबोधित करते हैं। इसकी ऊर्जा से जीवन की सभी समस्याओं का निदान प्राप्त किया जा सकता है, पूर्ण चेतनावान् बना जा सकता है एवं पूर्ण मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
इस त्रिशक्ति जगदम्बा सर्वार्थ सिद्धि मंत्र की साधना विधि की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए बड़े-बड़े योगी, साधु-सन्त, संन्यासी प्रयासरत हैं। इसका पूर्ण विधि-विधान व इसके फल का वर्णन करना सदैव वर्जित रहता है। किन्तु, मैं समाजकल्याण को ध्यान में रखकर माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी के आशीर्वाद से व उनकी इच्छानुसार इस महामंत्र के प्रथम चरण की सभी महत्त्वपूर्ण जानकारियां समाज को पहली बार सार्वजनिक रूप से प्रदान कर रहा हूँ। माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की ममतामयी कृपा व आशीर्वाद से मैंने इस त्रिशक्ति जगदम्बा सर्वार्थ सिद्धि मंत्र के माध्यम से पूर्णता प्राप्त की है। यह मंत्र मेरे पूर्व जन्मों के साधनाक्रमों का एक अंग रहा है। इसकी पूर्णता मैंने आज तक केवल अपनी एक शिष्या (सिद्धाश्रम प्राप्त) ‘‘योगिनी त्रिशक्ति महामाया‘‘ को ही प्रदान की है। वर्तमान समाज भी क्रमिक रूप से इसके क्रमों को पूर्ण करके इसकी पूर्णता प्राप्त कर सकता है।
इस महामंत्र के प्रथम चरण की पूर्णता के लिए सभी महत्त्वपूर्ण प्रारम्भिक जानकारियों का होना नितान्त आवश्यक है। मैंनेे इस मंत्र से मारण, मोहन, वशीकरण आदि कर्म पूर्ण होना लिखा है, मगर समाज मारण, मोहन व वशीकरण आदि को प्रायः नकारात्मक एवं विध्वंसात्मक रूप में प्रयोग करना समझता है। इन्हें किस रूप में लेना चाहिए, यह स्पष्ट करना अत्यन्त आवश्यक है। अतः उपर्युक्त महामंत्र के जाप फल में भाव निम्नानुसार ही होना चाहिए:
इस त्रिशक्ति जगदम्बा सर्वार्थ सिद्धि मंत्र में एक ऐसी अलौकिक ऊर्जा समाहित है, जिसकी तुलना किसी अन्य मंत्र से नहीं की जा सकती। इसमें हजारों गायत्री मंत्रों की ऊर्जा समाहित है। यह मंत्र मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन तथा उच्चाटन आदि के क्षेत्र में पूर्ण प्रभावक है और सभी कालकुचक्रों का नाशक है।

  1. मारण- मारण का भाव है अपने क्रोध, मद, लोभ आदि का नाश, न कि किसी की हत्या का चिंतन करना। इससे शत्रुओं को पराजित करने का भाव लिया जा सकता है। इस मंत्र के जाप से शत्रुपक्ष की शक्ति क्षीण हो जाती है। प्रकृति स्वतः दण्डित करती है। साधक को केवल इस मंत्र की ऊर्जा ग्रहण करते रहना चाहिए।
  2. मोहन- मोहन का तात्पर्य है अपनी इष्ट माता भगवती जी को प्रसन्न करना। यदि वह साधक पर प्रसन्न हो गयीं, तो फिर प्रकृतिसत्ता उसकी इच्छानुसार समाज के हर क्षेत्र में साधक के प्रति सम वातावरण तैयार करती रहती हैं।
  3. वशीकरण- इस मंत्र की ऊर्जा से अपने मन को पूर्णतया अपने वश में किया जा सकता है और जिसका अपने मन पर अधिकार हो जाता है, वह स्वतः सबके मन पर अधिकार करने की पात्रता प्राप्त कर लेता है।
  4. स्तम्भन- इस मंत्र के माध्यम से अपनी इन्द्रियों को विषय-विकारों से रोका जा सकता है या स्तम्भित किया जा सकता है। जो व्यक्ति अपने विषय-विकारों को रोकने की क्षमता प्राप्त कर लेता है, वह हर क्षेत्र में स्तम्भन कर सकता है।
  5. उच्चाटन- इस मंत्र के द्वारा मोह, ममता, लिप्तता आदि को त्यागकर साधक मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहता है और जिसने स्वयं को भौतिक जगत् से उच्चाटित करके आध्यात्मिक जगत् से नाता जोड़ लिया, तो फिर वह किसी भी क्षेत्र की स्थिति का उच्चाटन कर सकता है।

इस महामंत्र के जप में उपर्युक्त भाव साधक के प्रथम चरण की पात्रता प्राप्त करने तक ही रहना चाहिये। उससे आगे के भाव क्षेत्र में अन्य लाभ लेने के लिये इस महामंत्र का लाभ, पूर्ण पात्रताप्राप्त सद्गुरु के मार्गदर्शन में ही प्राप्त किया जा सकता है।
इस त्रिशक्ति जगदम्बा सर्वार्थ सिद्धि मंत्र का प्रभाव साधकों के लिए पारसमणि के समान कार्य करता है। साधक जितना ही इस मंत्र की ऊर्जा से एकाकार करता जाता है, उतना ही वह प्रकृतिसत्ता से एकाकार होता जाता है। इस मंत्र का उपयोग करके साधक अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकता है। नियमानुसार, समाज के गृहस्थ लोग कुछ मंत्रों का जाप करके पर्याप्त लाभ प्राप्त कर सकते हैं और अगर चाह लें, तो पूर्ण मोक्ष भी प्राप्त कर सकते हैं।

सर्वार्थ सिद्धि महामंत्र की विशेषताएं

  1. यह महामंत्र माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी सहित उनके तीनों स्वरूपों महासरस्वती, महालक्ष्मी व महाकाली को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद व दर्शन प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है।
  2. शक्ति साधना के महत्त्वपूर्ण मंत्रों-स्तोत्रों में इस महामंत्र का प्रमुख स्थान है।
  3. इसकी पूर्णता प्राप्त करके जीवन में सम्पूर्ण पूर्णता (मोक्ष) प्राप्त की जा सकती है।
  4. इसके माध्यम से मनुष्य अपनी कुण्डलिनी चेतना को जाग्रत् कर सकता है।
  5. इस महामंत्र का जाप स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े कोई भी कर सकते हैं।
  6. इसका जाप माला के द्वारा या बिना माला के भी किया जा सकता है, दोनों का फल बराबर है।
  7. इसका जाप रुद्राक्ष, स्फटिक, मूंगा, कमलगट्टे, हकीक या मोती की माला से किया जा सकता है। मगर रुद्राक्ष व स्फटिक मिश्रित माला से जाप करना ज्यादा उपयुक्त होता है या कमलगट्टे, स्फटिक व मूंगे की बनी माला भी प्रभावक होती है।
  8. जिस माला से इस महामंत्र का सवा लाख से अधिक जाप किया गया हो, उसे गले में धारण करके और अनेकों लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं, क्योंकि जिस माला से जाप किया जाता है, वह धीरे-धीरे स्वतः ऊर्जावान् हो जाती है, जिसका लाभ धारण करके ही अनुभव किया जा सकता है।
  9. इस महामंत्र का प्रथम पुरश्चरण सवा लाख का, मंत्र जाप कर लेने पर तथा आगे जाप करते रहने पर मंत्र का लाभ मिलना प्रारम्भ हो जाता है।
  10. इसका दूसरा पुरश्चरण चौबीस लाख मंत्र जाप करने पर पूर्ण होता है। इसे पूर्ण करने पर साधक को अनेकों अनुभूतियाँ मिलने लगती हैं। इस मंत्र पर प्रथम चरण का अधिकार प्राप्त हो जाता है और उसके अनेकों रुके कार्य अपनी स्वाभाविक गति से पूर्ण होने लगते हैं। साधक की आंतरिक चेतना जाग्रत् होने लगती है और उसे सूक्ष्म व स्वप्नों के माध्यम से माता भगवती व तीनों महादेवियों के दर्शन व आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
  11. चौबीस लाख के 24 अनुष्ठान पूर्ण करने पर यह महामंत्र सिद्ध हो जाता है, जिसे प्रथम चरण की सम्पूर्ण पूर्णता कहा जाता है। तदुपरान्त, साधक इस मंत्र के जप का उपयोग करके अपनी कामनाओं की पूर्ति कर सकता है। साधक के अन्दर अलौकिक तेज जाग्रत् हो जाता है। उसकी कुण्डलिनी चेतना जाग्रत् हो उठती है और उसे प्रकृति से एकाकार करने का मार्ग मिल जाता है। साधक के अन्दर देवत्व का उदय होता है। उसके आगे वह इस महामंत्र को जितना भी जाप करता जाता है, उसे उतनी ही सफलता मिलती जाती है। उसका बहुमुखी विकास होता है, प्रकृति की नजदीकता प्राप्त होती है और प्रकृति के रहस्य मिलने लगते हैं। सत्य-असत्य का ज्ञान होता है, किन्तु आगे गुरु मार्गदर्शन प्राप्त करना आवश्यक होता है, जिससे ऊर्जा का सदुपयोग हो, दुरुपयोग न हो सके।
  12. महामंत्र का जाप करते समय माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी के किसी भी स्वरूप का चिन्तन-पूजन किया जा सकता है। साथ ही माता सरस्वती, माता लक्ष्मी व माता काली के स्वरूपों का चिंतन भी किया जा सकता है व उनकी छवि का पूजन किया जा सकता है।
  13. इस महामंत्र का जाप करके शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त की जा सकती है।
  14. इसका 24 लाख जप पूर्ण करने पर वाक्सिद्धि प्राप्त होती है, मगर यदि दुरुपयोग किया गया, तो वाक्सिद्धि स्वतः नष्ट हो जाती है।
  15. इस महामंत्र का 24 लाख जाप पूर्ण होने पर साधक की आवश्यकतानुसार आर्थिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
  16. किसी समस्या के निदान के लिए यदि पूर्ण लगन से सवा लाख मंत्र का जाप, अनुष्ठान के रूप में किया जाय, तो तत्काल सफलता प्राप्त होती है।
  17. इसका प्रतिदिन 108 बार जाप किया जाय, तो माता भगवती की कृपा बनी रहती है।
  18. यह महामंत्र मनुष्य को पूर्ण भौतिक व आध्यात्मिक सफलता प्रदान करने वाला है।
  19. इस महामंत्र के 24 लाख जप के 24 अनुष्ठान पूर्ण करने वाला साधक समाज के किसी भी व्यक्ति की समस्या के निदान के लिए खुद एक निर्धारित जप करके लाभ दे सकता है, अर्थात् उसे दूसरे की समस्या निदान करने की पात्रता भी प्राप्त हो जाती है। इस महामंत्र का विस्तृत प्रयोग क्रम, महामंत्र की सभी पद्धतियों से पूर्णता प्राप्त सद्गुरु के मार्गदर्शन में प्राप्त किया जा सकता है।
  20. इसका जाप करने वाला साधक सभी प्रकार के भय से मुक्ति प्राप्त कर लेता है तथा शत्रुओं के बीच, घनघोर जंगल में हिंसक जानवरों के बीच या श्मशान में भी निर्भय घूम सकता है।

महामंत्र जाप के आवश्यक नियम

  1. त्रिशक्ति जगदम्बा सर्वार्थ सिद्धि महामंत्र का पूर्ण फल तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब साधक पहले चेतना मंत्र ‘‘ऊँ जगदम्बिके दुर्गायै नमः‘‘ का कम से कम सवा लाख जाप पूर्ण कर चुका हो।
  2. नित्य साधना में इस महामंत्र का जाप करने के पहले कम से कम 108 बार ‘‘ऊँ जगदम्बिके दुर्गायै नमः‘‘ का जाप करें, तभी ऊर्जा शरीर में समाहित होगी।
  3. इस महामंत्र का जाप एक सात्त्विक स्थान में बैठकर शुद्धता के वातावरण में करना चाहिये।
  4. मानसिक जाप या चलते-फिरते समय करने पर महामंत्र का आधा फल प्राप्त होता है।
  5. अशुद्ध व गंदे वातावरण में जाप करने का फल नहीं मिलता। अतः मंत्र जाप के समय शुद्धता का ध्यान रखना नितांत आवश्यक है।
  6. महामंत्र का जाप मानसिक या उच्च स्वर में किया जा सकता है। मगर अशुद्ध वातावरण, स्थान व कुपात्र, धार्मिक आस्था न रखने वाले नास्तिक लोेगों के सामने उच्च स्वर में उच्चारण नहीं करना चाहिये।
  7. पूजा स्थल में या किसी भी स्थान में मंत्र जाप करने के लिए जमीन के ऊपर कोई पवित्र आसन बिछा लेना चाहिये, अन्यथा पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण होने के कारण जप की ऊर्जा पृथ्वी खींच लेती है।
  8. जो भी आसन बिछाकर बैठें, वह शुद्ध व साफ होना चाहिए। आसन वरीयतः लाल या पीले कपड़े का हो, या फिर जो भी उपलब्ध हो, उसका उपयोग किया जा सकता है। मगर, हिरण व सिंह आदि की छालों में बैठकर कभी भी मंत्र जाप नहीं करना चाहिए।
  9. जब अनुष्ठान के रूप में मंत्र जाप करें, तो प्रयास करें कि जिस आसन पर बैठें, वह लाल या पीले कपड़े का ही बना हो। उसमें रुई आदि भरकर अच्छा बैठने योग्य बनवा सकते हैं। आसन में कम्बल या कुशा का भी उपयोग कर सकते है।
  10. मंत्र जाप में यथासंभव पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठने की व्यवस्था करें। ऐसा न होने पर किसी भी दिशा की ओर बैठकर मंत्र जाप किया जा सकता है।
  11. मंत्र जाप करने वाले को सात्त्विक आहार करना चाहिये। मांस-मदिरा या अन्य घातक नशों का सेवन करने वालों को मंत्र जाप का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो सकता।
  12. यदि मंत्र जाप अनुष्ठान के रूप में लगातार कई दिन चल रहा हो, तो ब्रह्मचर्य का पालन करना अति आवश्यक है। सामान्यता नित्य के जाप में संतुलित जीवन व अच्छे आचरण का पालन करना लाभप्रद होता है।
  13. कुल मंत्र जाप का दशांश हवन करना अनिवार्य रहता है, जिसे नित्य भी किया जा सकता है या कुल जाप का सप्ताह में एक बार दसवां भाग हवन कर दें या माह में एक बार जैसा बन सके। इस महामंत्र के जाप का पूर्ण फल तभी मिलता है, जब जाप का दशांश हवन किया जाए। यदि हवन न किया जा सके, तो कुल जाप का 25 प्रतिशत मंत्र जाप अतिरिक्त कर लेने से हवन का फल प्राप्त हो जाता है।
  14. बाजार में उपलब्ध या स्वयं के द्वारा तैयार हवन सामग्री से हवन किया जा सकता है।
  15. अनुष्ठान के रूप में मंत्र जाप तभी माना जाता है, जब एक ही स्थान में अन्य कार्यों को छोड़कर अधिक से अधिक समय मंत्र जाप किया जा रहा हो।
  16. सामान्यतया नित्य 11 बार, 21 बार, 51 बार या फिर 108 बार मंत्र जाप करें या जैसा समय हो, उतना जाप किया जा सकता है। मगर रोज कम से कम 108 बार एक स्थान पर बैठकर शुद्धता से जाप करना ज्यादा फलप्रद होता है। यदि इससे भी अधिक जाप कर लंे, तो अधिक फल प्राप्त होता है।
  17. इस महामंत्र के जाप के अनुष्ठान पूर्ण करने के विषय में और अनेकों प्रकार की जानकारियाँ सद्गुरु के सामने उपस्थित होकर प्राप्त की जा सकती हैं, मगर कम से कम सवा लाख मंत्र जाप पूर्ण करने के बाद ही।
  18. अनुष्ठान यदि अखण्ड ज्योति जलाकर पूर्ण किया जाय, तो ज्यादा अच्छा होता है। मगर, बिना ज्योति जलाये भी पूर्ण किया जा सकता है।

वर्तमान परिस्थितियों में इस महामंत्र का कुछ न कुछ जाप नित्य करना, मनुष्य के लिए अत्यन्त लाभकारी है। जो अनुष्ठानों के रूप में जाप पूर्ण कर सकें, उन्हें प्रयास करना चाहिए व जिनके पास ज्यादा समय नहीं है, उन्हें भी रोज कुछ न कुछ मंत्र जाप कर लेना चाहिये।
इस महामंत्र के विषय में ऐसे अनेकों महत्त्वपूर्ण रहस्य हैं, जिन्हें पात्रता के अनुसार ही अवगत कराया जा सकता है। अतः जिनकी लगन इस मंत्र की पूर्णता करने की हो, वे सतत प्रयास करें और मुझसे बराबर संपर्क रखते हुए मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। उनकी पात्रता के अनुसार उन्हें मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त होगा।
ध्यान रखें, मंत्र जाप का फल पूर्ण विश्वास, भावना व पूर्ण समर्पण पर आधारित रहता है, न कि मात्र गिनती पर। यदि आपके आचार-विचार व इष्ट एवं गुरु के प्रति विश्वास से भरपूर समर्पण भावना नहीं है, तो केवल जाप करते रहने का कुछ भी फल प्राप्त नहीं किया जा सकता।
इस महामंत्र के जाप के पहले ‘‘ॐ जगदम्बिके दुर्गायै नमः‘‘ का 108 बार जाप करना अत्यन्त आवश्यक है। सौभाग्यशाली होंगे माता जगत् जननी के वे भक्त, जो इस महामंत्र को अपने साधनात्मक जीवन में समाहित कर सकेंगे। इस महामंत्र के विषय में समय-समय पर समाज को और जानकारियां पुस्तकों के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती रहेंगी।

जय माता की - जय गुरुवर की