पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम

रक्षाबंधन पर्व

श्रावण मास की पूर्णिमा को पूरे भारतवर्ष में मनाया जाने वाला रक्षाबंधन पर्व, सिद्धाश्रम धाम में भी प्रतिवर्ष हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, जिसमें शक्तिस्वरूपा बहनों के द्वारा सिद्धाश्रम में उपस्थित गुरुभाई-बहनों को राखी बांधी जाती है। रक्षाबंधन के दिन देशभर से हजारों की संख्या में गुरुभाई- बहन राखी बधाने हेतु सिद्धाश्रम आते हैं। सभी लोग नशे, मांसाहार से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीने के संकल्प पर दृढ़ रहकर राष्ट्र धर्म की रक्षा व मानवता की सेवा में प्रवृत्त रहें; सभी गुरुभाइयों बहनों से इसी वचन की अपेक्षा लेकर शक्तिस्वरूपा बहनों के द्वारा सभी को राखी बांधी जाती है।

रक्षाबन्धन त्यौहार को मनाने की प्रारंभिक घटना धर्मग्रन्थों में वर्णित है- राक्षसों से घबराए इंद्र जब बृहस्पति के पास पहुंचे, तो उन्होंने इंद्र के हांथों में रक्षासूत्र बांधते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण किया–

येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।

अर्थात् ” जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।” मान्यता है कि रक्षासूत्र के प्रभाव से इंद्र विजयी हुए। इस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी, अतः इसी दिन से यह पर्व के रूप में प्रचलित हुआ।

बदलते समय के साथ रक्षासूत्र आधुनिक समय में राखी के रूप में भी प्रचलित हुआ। प्राचीन पौराणिक घटना के अनुसार यह केवल संकल्पपूर्ण रक्षा से जुड़ा विषय है, जो किसी के लिए भी प्रयुक्त हो सकता है। इसे केवल भाई-बहन के त्यौहार तक सीमित करना इस महान परम्परा को सीमित करने जैसा है।

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