पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम

गोसेवा समर्पण दिवस

कार्तिक शुक्लपक्ष की अष्टमी को देशभर में गोपाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि स्वयं श्रीकृष्ण भगवान् ने गोमाता के महत्त्व को समाज में और प्रभावक तरीके से स्थापित करने के लिए, इस दिन गोपूजन का विधान सुनिश्चित किया था। गाय, भारत की पुण्यधरा पर युगों-युगों से पूज्य है, पहले जहाँ हर घर में गोपालन को महत्त्व दिया जाता था, वहीं ऋषियों के आश्रम में भी गायों की सेवा को सर्वोपरि माना जाता था। गाय की महिमा का बखान वेद- पुराणों सहित हमारे ऋषियों-मुनियों ने मुक्तकंठ से किया है। अथर्ववेद में वर्णित है-

माता रुद्राणां दुहिता वसूनां।
स्वसा आदित्यानां अमृतस्य नाभिः॥

अर्थात् ” गाय रुद्रों की माता है, वसुओं की पुत्री है, सूर्य की भगिनी है और घृतरूप अमृत का केन्द्र है।”

अग्नि पुराण में गोमहिमा के उपयोगितापूर्ण सभी पहलुओं को स्पर्श करते हुए कहा गया है-

“गायें परम पवित्र और मांगलिक हैं। गाय का गोबर और मूत्र दरिद्रता दूर करता है। उन्हें खुजलाना, नहलाना, पानी पिलाना, पुण्यदायक हैं। गोमूत्र, गोबर, गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत, इनका मिश्रण अर्थात्, पंचगव्य सभी शारीरिक अनिष्टों को दूर करता है। गोग्रास देने वाला सद्गति प्राप्त करता है। गोदान करने से समस्त कुल का उद्धार होता है। गाय के श्वास से भूमि पवित्र होती है और स्पर्श से पाप नष्ट होते हैं तथा पंचगव्य पीने से पतित का भी उद्धार होता है।’

सच्चिदानंदस्वरूप सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा गोमाता के महत्त्व को जन-जन में स्थापित करने के लिए शुक्लपक्ष की अष्टमी को ‘गोसेवा समर्पण दिवस’ घोषित किया गया है। पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम स्थित त्रिशक्ति गोशाला में यद्यपि नियुक्त कार्यकर्तागण नित्यप्रति गोवंशों की सेवा करते हैं, तथापि गोसेवा समर्पण दिवस पर सिद्धाश्रमवासियों और आगन्तुक भक्तों के द्वारा गोशाला की विशेष रूप से सफाई कर गोवंशों को खान कराया जाता है, तत्पश्चात् सद्गुरुदेव जी महाराज के द्वारा हर गोवंश को पूड़ी या रोटी खिलाई जाती है।

सिद्धाश्रम में रहने वाले भक्तगण इस दिन पूरे मनोभाव से गोशाला की सफाई व गोसेवा के लिए उत्सुक रहते हैं। यहाँ मनाए जाने वाले ‘गोसेवा समर्पण दिवस’ से प्रेरणा पाकर आज समाज के लाखों लोग, इस दिन गोमाता की सेवा में अपना समय व्यतीत करते हुए अपने जीवन सार्थक बनाते हैं।

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