वृक्षारोपण क्रम

एक ऐसा स्थान, जहाँ वनस्पति के नाम पर कभी झाड़-झंखाड़ों की बहुतायत और केवल काष्ठ भर प्रदान कर सकने वाले कुछ मझोल आकार के पौधों का समूह रहा हो, वहाँ आज सैकड़ों प्रकार के फलदार और छायादार वृक्ष पल्लवित पुष्पित होकर सिद्धाश्रम की शोभा बढ़ा रहे हैं। सिद्धाश्रम की धरा पर आज फल, फूल और जीवनदायिनी वृक्षों से युक्त उद्यानों का कई जगह निर्माण किया गया है। जिन पत्थरों पर कभी घास भी नहीं पनपती थी, आज गुरुकृपा से वहाँ आम, आँवला, अमरूद, अश्वत्थ, वटवृक्ष, जामुन, बेल, नीम इत्यादि वृक्ष बड़ी संख्या में हरियाली बिखेर रहे हैं।

यह सत्य है कि वृक्ष मनुष्य के पालक समान होते हैं। वृक्षों से मनुष्य फल, काष्ठ, छाया इत्यादि जीवनोपयोगी आवश्यकताओं की पूर्ति सहज ही करता है, इसीलिए वृक्षारोपण को पुण्यकार्य कहा गया है। शास्त्रों में उद्धृत भी है

पश्यैतान् महाभागान् पराबैंकान्तजीवितान् । वातवर्षातपहिमान् सहन्तरे वारयन्ति नः॥
पुष्प-पत्र-फलच्छाया मूलवल्कलदारुभिः। धन्या महीरुहा येषां विमुखा यान्ति नार्थिनः।।
दश कूप समा वापी, दशवापी समोहद्रः। दशहृद समः पुत्रो, दशपुत्रो समो दुमः।।

अर्थात् “वृक्ष इतने महान् होते हैं कि परोपकार के लिये ही जीते हैं। ये आँधी, वर्षा और शीत को स्वयं सहन करते हैं। वे वृक्ष धन्य हैं, जिनके पास से याचक फूल, पत्ते, फल, छाया, जड़, छाल और लकड़ी से लाभान्वित होते हुए कभी भी निराश नहीं लौटते। दस कुओं के बराबर एक बावड़ी हो दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबो के बराबर एक पुत्र और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है।”

सिद्धाश्रम में भिन्न-भिन्न स्थानों पर महत्त्वपूर्ण वृक्षों के साथ वृक्ष समूहों से आच्छादित बगिया भी हैं तथा खेतों की मेड़ों पर फल-फूल और अनेक औषधीय वृक्ष सुशोभित हैं। सदगुरुदेव जी महाराज के सान्निध्य व निर्देशन में हर वर्ष महत्त्वपूर्ण तिथियों पर सिद्धाश्रम में कहीं न कहीं वृक्षारोपण कार्य अवश्य सम्पन्न किया जाता है, जिससे सिद्धाश्रम में वृक्षों की बहुलता के साथ ही इस शुभकार्य से प्रेरणा पाकर समाज के लोग भी वृक्षारोपण हेतु अपने कदम आगे बढ़ा रहे हैं। सिद्धाश्रम में किए जाने वाले वृक्षारोपण किसी योजना के तहत या औपचारिकतावश नहीं किए जाते, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए यह क्रम सम्पन्न कराया जाता है और नन्हें पौधों के पूर्ण विकसित होने तक उनकी हर प्रकार से पूर्ण देखभाल की जाती है।

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