पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम

Chetna Mantra

श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर

श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर को यदि पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम धाम का हृदयस्थल कहें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि प्रथम तो यह मंदिर सिद्धाश्रम के मध्य में स्थित है और द्वितीय इस मंदिर में श्री दुर्गाचालीसा का अखण्ड पाठ, अनुष्ठान के रूप में हर क्षण ठीक वैसे ही गतिमान है, जैसे किसी काया में स्थित हर क्षण स्पंदित होता हृदय।

श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर

सिद्धाश्रम की धरा का कण-कण ‘माँमय’ बन सके, बहती हवाओं में ‘माँ’ की अनुभति का मिठास हो, यहाँ श्वास ले रहे हर प्राणी के मनोमस्तिष्क में ‘माँ’ की महिमा का गान हो एवं यहाँ आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सदैव ही ‘माँ’ की कृपा मिले, इसलिए इस अखण्ड अनुष्ठान की नीव रखी गई। सिद्धाश्रम धाम की स्थापना के कुछ माह पश्चात् ही सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर की स्थापना कर दी गई थी। इस अखण्ड अनुष्ठान की ऊर्जा इतनी प्रभावक है कि, जहाँ प्रारम्भ में कुछ भक्तों की हो उपस्थिति रहती थी, वहीं आज समाज के बीच से सैकड़ों की संख्या में ‘माँ’ के भक्त नित्य आकर ‘माँ’ के गुणगान रूपी अमृत का पान करते हैं और ‘माँ’ की कृपा के पात्र बनते हैं। दिनांक 15-4-1997 को एक छप्पर में प्रारम्भ इस अखण्ड अनुष्ठान को 01 वर्ष के भीतर ही भवन का आश्रय मिल गया, जिस पर आज भी यह क्रम अहर्निश चल रहा है।

आज से 25 वर्ष पूर्व की विकट परिस्थिति में इस एकांत-साधनविहीन स्थान पर, किसी अध्यात्मिक क्रम को अखण्ड रूप से अनंतकाल के लिए घोषित करके प्रारंभ कर देना सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज जैसे संकल्पवान कर्मयोगी ऋषि के ही वश की बात हो सकती है । साधारण मनुष्य तो ऐसे असाधारण कार्य के बारे में सोच भी नहीं सकता, करने की तो बात ही दूर है। श्री दुर्गाचालीसा पाठ मंदिर में लिखा ‘अनंतकाल’ शब्द जहाँ सद्गुरुदेव जी महाराज की असाधारण क्षमता का बोध कराता है, वहीं यह उस मंगलमय भविष्य का भी सूचक है, जिसमें मनुष्यता को ‘माँ’ की भक्ति और ‘माँ’ की कृपा का सहारा सदैव सदैव प्राप्त होता रहेगा। चालीसा पाठ मंदिर के पृष्ठ भाग में, कुछ वर्ष पूर्व ही सद्गुरुदेव जी महाराज के द्वारा स्थायी विशाल’ श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर’ का निर्माण प्रारम्भ करवाया गया है, जिस पर आने वाले समय में शीघ्र ही यह क्रम स्थानांतरित होगा।

धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज, माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा के उपासक हैं और उन्होंने यह पथ समाज को भी प्रदान किया है। ‘माँ’ की महिमा से हर मानवमन परिचित हो सके, ‘माँ’ की ज्योति हर घर में प्रज्ज्वलित हो व ‘माँ’ की सहज-सरल भक्ति समाज अपना सके, इसीलिए सद्गुरुदेव जी महाराज ने सिद्धाश्रम में श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ प्रारम्भ कराया है। सिद्धाश्रम धाम को इस अद्वितीय क्रम का वह गौरव प्राप्त है, जो इस सम्पूर्ण धरा पर किसी भी धार्मिक स्थल को प्राप्त नहीं है।

इस अखण्ड अनुष्ठान की ऊर्जा का वह प्रभाव है कि आज देशभर में अलग-अलग हजारों स्थानों पर नित्यप्रति, श्री दुर्गाचालीसा पाठ के क्रम समाजहित में शक्तिसाधकों के द्वारा सम्पन्न कराए जा रहे हैं। इस क्रम की अखण्डता के साथ सद्गुरुदेव जी महाराज की साधनात्मक अखण्डता ‘सोने पर सुहागा’ की स्थिति निर्मित करती है। प्रारंभ से लेकर आज तक का कोई ऐसा दिन नहीं रहा, जब सुबह-शाम सद्गुरुदेव जी महाराज के द्वारा श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर में ‘माँ’ की आरती का क्रम सम्पन्न न किया गया हो। ‘माँ’ के पूजन-अर्चन का यह क्रम इस मंदिर को और विशिष्टता प्रदान करता है, जिसे देखने एवं उस प्रक्रिया से लाभान्वित होने के लिए नित्यप्रति देश के कोने-कोने से लोग सिद्धाश्रम धाम आते हैं। यह पाठ धर्मग्रन्थों में वर्णित नवधा भक्ति के दूसरे सोपान कीर्तन का ही एक रूप है, जिसके द्वारा इष्ट के नाम, गुण, लीलाओं और उनकी महिमा का गुणगान किया जाता है, जिससे मुनष्य सहज ही भक्ति की गहराई को प्राप्त कर लेता है।

श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर में स्थापित दिव्य शक्तियों की आरती करते हुए परम पूज्य गुरुवरश्री

श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर में महिषासुरमर्दिनी माता की छवि के साथ ही माँ शेरावाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली, गणपति देव, हनुमान जी, ब्रह्मा, विष्णु, महेश एवं भैरव जी की छवियाँ स्थापित हैं, जिनका नित्यप्रति पूजन सद्गुरुदेव जी महाराज के द्वारा किया जाता है एवं वर्ष में दो बार, दोनों नवरात्र की प्रतिपदा तिथि की पूर्व रात्रि में पूरे मंदिर की सफाई का क्रम संपन्न होता है।

5 घण्टे और 24 घण्टे के अनुष्ठान के रूप में श्री दुर्गाचालीसा पाठ का क्रम, एक सरल किन्तु अतिप्रभावक साधना पद्धति बनकर समाज में स्थापित हो चुका है। समाज के बीच सामूहिक रूप से आयोजित होने वाले कुछ प्रमुख धार्मिक क्रमों को लोगों ने आज नशे और मनोरंजन तक ही सीमित कर दिया है, जिससे इनका लाभ मनुष्य प्राप्त नहीं कर पाता। वहीं पूर्ण साधनामय वातावरण में सम्पन्न होने वाले इस विशिष्ट अनुष्ठान की ऊर्जा से सहज ही लोगों के जीवन में परिवर्तन आता है।

जय माता की - जय गुरुवर की