पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम

Chetna Mantra

मूलध्वज साधना मंदिर

इस धरा पर प्रवेश के उपरांत, सद्गुरुदेव जी महाराज के द्वारा दिनांक 23 जनवरी 1997, दिन- गुरुवार, शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के शुभमुहूर्त पर भूमिपूजन के पश्चात् सर्वप्रथम मूल की स्थापना की गई। इसी दिन उपस्थित कुछ भक्तों के समक्ष गुरुदेव जी ने अपने चिंतन में कहा था कि ”यह वो स्थान है, जहाँ पर ‘माँ’ के मूलस्वरूप की स्थापना होगी और 108 महाशक्तियज्ञों की श्रृंखला के शेष 100 यज्ञ सम्पन्न होंगे, जिसके माध्यम से समाज अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करेगा।”

समय के साथ-साथ समाज ने गुरुदेव जी की इस भविष्यवाणी की सत्यता को देखा, कि आश्रम में आने वाला कोई भक्त यदि किसी कारणवश गुरुदेव जी से नहीं मिल पाया, तब भी मूलध्वज मंदिर में उसके द्वारा किये गए निवेदन से कहीं न कहीं उसे ‘माँ’- गुरुवर की कृपा अवश्य प्राप्त हुई है। समस्याओं को लेकर गुरुदेव जी से मिलने आए भक्तों को भी, गुरुवर द्वारा मूलध्वज मंदिर में निवेदन करने के निर्देश दिए जाते हैं, ताकि भक्तों को ‘माँ’ की कृपा प्राप्त हो सके।

अस्थाई नवनिर्मित मूलध्वज मंदिर

सर्वविदित है कि मुख्य मूलध्वज मंदिर परिसर में, जहाँ दिनांक 23 जनवरी 1997 से 22 वर्षों तक नित्यप्रति अनवरत रूप से सुबह-शाम माता आदिशक्ति जगतजननी जगदम्बा की आरती सम्पन्न हुई, वहाँ भव्य महाशक्तियज्ञ स्थल के निर्माण के परिप्रेक्ष्य में मूलध्वज को दिनांक 06 अप्रैल 2019, चैत्र नवरात्र के पावन अवसर पर समीप ही नवनिर्मित मूलध्वज साधना मंदिर में स्थानान्तरित कर दिया गया है।

मूलध्वज की अलौकिकता, विशिष्टता एवं चैतन्यता का एकमात्र कारण है, पिछले 25 वर्षों से सुबह-शाम अनवरत हो रही माता आदिशक्ति जगतजननी जगदम्बा की आरती अनुकूल- प्रतिकूल सभी परिस्थितियों के बीच मूलध्वज मंदिर पर महातपस्विनी शक्तिमयी माताजी के द्वारा नित्य प्रातः काल की आरती, पिछले 25 वर्षों से एक निर्धारित समय पर पूर्ण की जा रही है।

इसके अतिरिक्त यह भू-भाग स्वयंसिद्ध भी है, क्योंकि प्रकृतिसत्ता के द्वारा उन विशिष्ट महाशक्तियज्ञों हेतु इस स्थान को चुना गया है, जिनके द्वारा युगपरिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होना है। जहाँ समाज में आज मंत्रोच्चार एवं कर्मकांड पर ही सबकुछ सीमित होकर रह गया है, वहीं तप- साधना एवं त्याग के द्वारा किसी स्थल को चैतन्य करने एवं इष्ट के आवाहन का यह कार्य स्वयं में अद्वितीय है। यह वो स्थान है, जहाँ भक्तिभाव से ओतप्रोत भक्तगण नित्यप्रति मंदिर की परिक्रमा लगाते हैं, यहाँ नित्य बैठकर साधकों के द्वारा विशिष्ट मंत्रों के जाप किये जाते हैं एवं यहाँ पर शंख-घंटे की पवित्रध्वनि के साथ सुबह-शाम ‘माँ’ की आरती सम्पन्न होती है। इन्हीं क्रमों की निरंतरता से यह स्थान इतना चैतन्य हो गया है कि यहाँ आकर आरतीक्रम में सम्मिलित होने वाले भक्तों को ‘माँ’ की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।

भविष्य में समाज मुख्य मूलध्वजस्थल पर वह अद्भुत निर्माण कार्य भी देखेगा, जिसमें सच्चिदानंदस्वरूप योगेश्वर स्वामी श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की उपस्थिति और निर्देशन में हजारों-हजार वर्ष के लिए यज्ञशाला का निर्माण होगा और एक ऋषि के करकमलों द्वारा ऐसे प्रभावी महाशक्तियज्ञ संपन्न किये जायेंगे, जो समाज के लिए युगपरिवर्तनकारी सिद्ध होंगे।

मूलध्वज की स्थापना के उपरान्त ही ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने घरों में शक्तिध्वज लगाने का कल्याणकारी पथ प्रदान किया है। मान्यता है कि ध्वज की बनावट में निहित वास्तु मनुष्य के लिए सदैव कल्याणकारी होती है। यही कारण है कि घरों में, मंदिरों में, युद्ध के समय रथों में ध्वज लगाकर रखे जाते थे।

पूजनीया तपस्विनी शक्तिमयी माताजी

ऋग्वेद में वर्णन है कि–

अस्माकमिन्द्रः समृतेषु ध्वजेष्वस्माकं या इषवस्ता जयन्तु ।
अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्त्वस्माँ उ देवा अवता हवेषु ।।

अर्थात् “हमारे ध्वज फहराते रहें, हमारे बाण विजय प्राप्त करें, हमारे वीर वरिष्ठ हों, देववीर युद्ध में हमारी विजय करवा दें।” अतः धर्म की जय, मानवता की रक्षा और विश्व के कल्याण हेतु ही सिद्धाश्रम में मूलध्वज की स्थापना की गई। प्रत्येक वर्ष चैत्र नवरात्र व शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा तिथि, सिद्धाश्रम स्थापना दिवस (23 जनवरी) एवं गुरुपूर्णिमा पर्व पर मूलध्वज साधना मंदिर में सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा पुराने ध्वज को बदलकर, अभिमन्त्रित नए ध्वज लगाने का क्रम सम्पन्न कराया जाता है। ‘आदिशक्ति’ की कृपा प्राप्ति हेतु लालरंग के ध्वज की स्थापना का विधान भी है, इसीलिए सिद्धाश्रम निर्देशित हर एक क्रमों में लालध्वज ही उपयोग किया जाता है।

जय माता की - जय गुरुवर की