गुरुपूर्णिमा के दिन शिष्यों के द्वारा प्रायः देशभर में गुरु के पूजन और सेवा इत्यादि की प्रक्रियाएं सम्पन्न की जाती हैं। यह पर्व अपनी निर्मल भावना का गुरुचरणों में समर्पण का दिन है। यह वह दिन है, जब शिष्य, गुरु में समाहित अलौकिक ज्ञानपुंज से अपने जीवन के तम को मिटाने के लिए पूर्ण श्रद्धायुक्त हृदय से उनकी आराधना करता है। समाज में गुरुपूर्णिमा पर्व पर परम्परा है कि शिष्य अपने गुरु का पूजन व चरणवंदन करके अपना जीवन धन्य बनाते हैं, लेकिन इस परंपरा को जनकल्याण का स्वरूप देकर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने अपनी ऊर्जा को अपने शिष्यों तक सीमित न करके जन-जन को लाभान्वित करने का विधान रचा है।
सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज, अपने शिष्यों को जनकल्याणकारी क्रमों के साथ, गुरुपूर्णिमा पर्व मनाने के लिए निर्देशित करते हैं। अतः इस दिन परम पूज्य गुरुवरश्री के शिष्यों के द्वारा अपने-अपने क्षेत्रों में अधिक से अधिक 5 घंटे, 24 घंटे के श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ व 1 घंटे के आरतीक्रम समाज के बीच सम्पन्न किये जाते हैं। इन क्रमों के माध्यम से कार्यकर्ता, लोगों को नशामुक्त जीवन जीने के लिए प्रेरित करने के साथ संगठन की विचारधारा से जोड़ने का कार्य करते हैं। नए भक्त, जिनका सिद्धाश्रम धाम से कोई परिचय नहीं भी होता, जो इस पर्व पर सिद्धाश्रम आकर गुरुवर का आशीर्वाद प्राप्त नहीं कर पाते, उन्हें भी कार्यकर्ताओं के द्वारा इन साधनात्मक अनुष्ठानों के माध्यम से, इस दिन सद्गुरुदेव जी महाराज की चेतनातरंगों के अलौलिक प्रकाश का भागीदार बनाया जाता है।
इसी क्रम में पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में रहने वाले शिष्यों की भावनाओं को ध्यान में रखकर गुरुपूर्णिमा पर्व पर सद्गुरुदेव जी महाराज के द्वारा चरण पूजन का क्रम सम्पन्न कराया जाता है। सभी गुरुभाई-बहनों की ओर से इस पुनीत कार्य को शक्तिस्वरूपा बहनें सम्पन्न करती हैं। इस समय का दृश्य अत्यन्त मनोरम होता है। इससे पूर्व चालीसा पाठ मंदिर में आरतीक्रम के उपरान्त मूलध्वज साधना मंदिर में नवीन शक्तिध्वज का रोहण किया जाता है। शेषक्रम नित्यप्रति की तरह पूर्ववत रहते हैं।
कहा गया है-
गुरौ न प्राप्यते यत्तन्नान्यत्रापि हि लभ्यते।
गुरुप्रसादात सर्वं तु प्राप्नोत्येव न संशयः।।
अर्थात् ” गुरु के द्वारा जो प्राप्त नहीं होता, वह अन्यत्र भी नहीं मिलता। गुरुकृपा से निस्संदेह (मनुष्य) सभी कुछ प्राप्त कर ही लेता है।” इसलिए जीवन में सुख, शान्ति पुरुषार्थ व अध्यात्मिक यात्रा हेतु लोग इस दिन साधना व जनजागरणक्रमों के द्वारा गुरुकृपा प्राप्ति का उद्यम करते हैं।