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108 महाशक्तियज्ञ
108 महाशक्तियज्ञों की शृंखला
पवित्रता, त्याग और समर्पण के मिश्रित भावों के साथ, भौतिक इच्छाओं से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्मांड के हित जैसे वृहद उद्येश्यों की पूर्ति हेतु यज्ञकार्य संपन्न किए जाते हैं। प्रारंभ से भारत भूमि में यज्ञों की महान परंपरा रही है, जिसका उल्लेख सबसे प्राचीन साहित्य अर्थात् वेदों में है।
प्राचीन भारत की धरती पर लोककल्याण हेतु सभी आश्रमों में ऋषियों व तपस्वियों के द्वारा यज्ञकार्य संपन्न किए जाते थे। मान्यता है कि अग्नि में मंत्रों के साथ जिस संकल्प को लेकर पवित्रतापूर्वक शुद्ध पदार्थों से युक्त हविष्यान्न समर्पित किया जाता है, उन मंत्रों से सबंधित देव शक्तियां पुष्ट होती हैं और संकल्प पूर्ति का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
उत्तिष्ठ ब्रह्मणास्यते देवान् यज्ञेन बोधय।
आयु प्राणं प्रजाँ पशून् कीर्तिं यजमानं च वर्धय।।
है ब्रह्मणस्पते! चारों वेदों विद्वान! तू अब उठ खड़ा हो, आलस्य मत कर! उठ और यज्ञों द्वारा विश्व की देवी शक्तियों को जागृत कर और उन जागृत हुई दैवी शक्तियों के द्वारा जहाँ यजमान की सब प्रकार के सुखमय साधनों से बढ़ा, वहाँ प्राणिमात्र की आयु, जीवन शक्ति, उक्त प्रजा, अच्छे पशु और यश तथा कीर्ति भी को बढ़ा दें।
सदगुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र महाराज ने इस कलिकाल की भयावहता को समाप्त करने हेतु 108 महाशक्तियज्ञों की श्रंखला को संपन्न करने का संकल्प लिया है, जो स्वयं में अद्वितीय है। यह महाशक्तियज्ञ ऐसा कठिनतम यज्ञ है जिसे संपन्न करने की क्षमता वर्तमान में किसी भी साधु, संत, सन्यासी अथवा तांत्रिक-मांत्रिक में नहीं है। आज समाज में तथाकथित यज्ञाचार्यों द्वारा बड़े-बड़े यज्ञ संपन्न किए जाते हैं लेकिन उचित नियमों-विधानों के अभाव में यह क्रम केवल औपचारिकता बनकर रह जाता है। जबकि सदगुरुदेव जी महाराज के द्वारा कर्ता, क्रिया, कर्म की एकरूपता के साथ संपन्न किए जाने वाले इन महाशक्तियज्ञों के माध्यम से माँ की पूर्ण कृपा सहज ही प्राप्त की जा सकती है।
समाज के बीच विभिन्न स्थानों पर सम्पन्न हुए 08 महाशक्तियज्ञ
क्रमांक | दिनांक | स्थान |
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1. | 25-07-1990 | जबलपुर (म.प्र. |
2. | 06-12-1990 | त्रिलोकपुर, हरियाणा |
3. | 15-01-1991 | मसानारागडान, जिला- यमुनानगर, हरियाणा |
4. | 27-03-1991 | रानीपुर, जिला- अम्बाला, हरियाणा |
5. | 04-04-1992 | कलेसर, जिला- वमुनानगर, हरियाणा |
6. | 18-10-1993 | अनूपपुर (म.प्र.) |
7. | 10-07-1994 | मानस भवन, रीवा (म.प्र.) |
8. | 25-09-1995 | बिन्दकी, जिला- फतेहपुर (उ.प्र.) |
सदगुरुदेव जी महाराज ने जनहित के लिए अपने जीवन के साथ-साथ अपनी साधनाओं की भी समर्पित किया है। गुरुवर ने जिन साधनाओं के बल पर माँ के दर्शन प्राप्त किए उन सभी साधनाओं को 108 यज्ञों के माध्यम से समाज हित के लिए संकल्पित किया। पूर्व में इन 108 यज्ञों की श्रंखला के 8 यज्ञ समाज के बीच अलग-अलग स्थानों पर संपन्न किए गए, ताकि समाज को इस क्रम की अलौकिकता की अनुभूति प्राप्त हो, तथा समाज इन यज्ञों से लाभान्वित हो सके।
अलग-अलग मौसमों एवं स्थानों पर इन क्रमों को संपन्न करके सदगुरुदेव जी महाराज ने असंभव से असंभव कार्यों को संभव करके समाज को दिखाया और मां की कृपा से अवगत कराया। प्रथम यज्ञ के प्रारंभ में सदगुरुदेव जी महाराज ने भविष्यवाणी की थी कि ‘इन यज्ञों में मां की पूर्ण कृपा समाहित है। मैं अलग-अलग मौसमों में इन यज्ञों को संपन्न करूँगा और हर यज्ञ में बरसात अवश्य होगी।’ जोकि पूर्णतः फलित हुई।
8 यज्ञों को समाज के बीच संपन्न करने के पश्चात् शेष 100 यज्ञों को पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम की पुण्यधरा पर पूर्ण करने का निर्णय सदगुरुदेव जी महाराज के द्वारा लिया गया, जिसके लिए यज्ञस्थल का निर्माण कार्य मुख्य मूलध्वज स्थल में प्रारंभ हो चुका है। (विदित है कि यज्ञस्थल निर्माण हेतु चयनित स्थल- पूर्व मूलध्वज मंदिर पर वर्ष 1997 से 2019 तक प्रत्येक दिन सुबह-शाम मां की आरती के द्वारा मां के आवाह्न का क्रम संपन्न किया गया है)। वर्तमान समयकाल में ये महाशक्ति यज्ञ माता आदिशक्ति जगतजननी जगदंबा की कृपाप्राप्ति एवं विश्वकल्याण का सबसे सशक्त माध्यम हैं। जिनका सामान्य रूप से वर्णन तो संभव नहीं किंतु भविष्य में सदगुरुदेव योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के मार्गदर्शन व निर्देशन में महाशक्तियज्ञों की प्रक्रिया प्रभाव सहित सम्पूर्ण जानकारी, एक पुस्तिका के रूप में समाज को अवश्य उपलब्ध कराई जाएगी।
जय माता की - जय गुरुवर की