23 जनवरी 1997 को सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम धाम की स्थापना की गई, जिसके उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 23 जनवरी को यह पर्व ‘स्थापना दिवस’ के रूप में विभिन्न आयोजनों के साथ मनाया जाता है। यह स्वयं में महत्त्वपूर्ण दिवस है, क्योंकि इस दिन सिद्धाश्रम धाम जैसे शक्तितीर्थ की नीव रखी गई थी। यह वह दिन था, जब युगपरिवर्तन हेतु प्रकृति के द्वारा हजारों वर्षों से संरक्षित एक दिव्य भूभाग की उपयोगिता का श्रीगणेश, युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के करकमलों से हुआ।
स्थापना दिवस पर सिद्धाश्रम धाम में सुबह से लेकर रात्रि तक विभिन्न आयोजनों के क्रम सम्पन्न होते हैं। इस दिन प्रातः काल की आरतीक्रम के उपरान्त, युवाओं के मन में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को बढ़ाने के लिए सर्वप्रथम अखिल भारतीय सिद्धाश्रम दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है, जिसमें देशभर के प्रतिभागी अपने-अपने आयु वर्ग के अनुसार प्रतियोगिता में शामिल होते हैं। अखिल भारतीय दौड़ प्रतियोगिता के साथ पिरामिड इत्यादि क्रम भी समाज को प्रेरणा प्रदान करने वाले होते हैं। अंत में विजयी प्रतिभागियों को एक निश्चित राशि, मेडल और प्रमाणपत्र से पुरस्कृत किया जाता है। मैदान के मंच पर गुरुदेव जी की उपस्थिति से प्रतिभागियों, दर्शकों एवं कार्यकर्ताओं में एक अलग ही उत्साह होता है, जो कि देखते ही बनता है।
तत्पश्चात् अपराह्न बेला में वर्तमान कुरीतियों व अनावश्यक परंपराओं से रहित, सारयुक्त संकल्पों के साथ योगभारती सामूहिक विवाह पद्धति से मूलध्वज साधना मंदिर में विवाह संपन्न कराया जाता है।
समाज में आज विवाहप्रथा, प्रदर्शन और मनोरंजन मात्र बनकर रह गई है। पवित्रमंत्रों, सारगर्भित क्रिया-कलापों एवं दो आत्माओं की परस्पर स्वीकारोक्ति पर आधारित प्राचीन विवाह पद्धति आज मदिरापान, अश्लीलता और विवादों का चलन बनकर रह गई है। निरर्थक परम्पराओं एवं जटिल प्रक्रियाओं के कारण, वैवाहिक क्रमों से सम्बंधित सभी व्यक्तियों का समय तनाव, परेशानियों और बोझिल व्यवस्थाओं में ही गुजरता है। विवाहों में जिन क्षेत्रीय आधारों पर भिन्न- भिन्न परम्पराओं की स्थापना हुई थी, आज उन आधारों का लोप हो चुका है, किन्तु उन परम्पराओं का बोझ आज भी ढोया जा रहा है। इन तमाम विकृतियों के कारण परम्परागत विवाह पद्धति दोषपूर्ण हो चुकी है।
सिद्धाश्रम में सम्पन्न होने वाली विवाह पद्धति में सारयुक्त और उपयोगीक्रमों का समावेश करके एक नवपरम्परा की नीव डाली गई है, जिससे यह मांगलिक क्रम अपने वास्तविक स्वरूप के साथ सम्पन्न होता है। इस नवपद्धति की विशेषता यह है कि इसे फिजूलखर्ची, आडम्बरों व दहेजप्रथा से मुक्त रखा गया है और सबसे बड़ी बात यह कि वर-वधू दोनों पक्ष के परिजन समानता के पलड़े पर खड़े होकर पूर्ण संतुष्टिभावना के साथ कार्यक्रम को सम्पन्न करते हैं तथा किसी व्यक्ति को किसी अनावश्यक बात के लिए अपमानित नहीं होना पड़ता। समार्थ्यवान व गरीब परिवारों का एक समान नियम से क्रम सम्पन्न कराना इस पद्धति की मुख्य विशेषता है।
दौड़ प्रतियोगिता एवं सामूहिक वैवाहिक कार्यक्रम के पश्चात् रात्रि में आयोजित अखिल भारतीय सिद्धाश्रम सुरसंध्या एवं कविसम्मेलन, उपस्थित भक्तों व श्रद्धालुओं को भावविभोर कर देने वाला होता है। हास्य-व्यंग्य व अतिरेकतापूर्ण श्रृंगाररस से हटकर धर्म, राष्ट्र, मानवता, लोककल्याण, गुरुसत्ता व इष्ट की महिमा आदि कल्याणकारी विषयों पर आधारित काव्य व भावगीत पूरे वातावरण को चैतन्यता प्रदान करते हैं।
🚩🪷🌺धर्म सम्राट युगचेतना पुरुष परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के पावन चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम।🙏🪷🌺
जय माता की जय गुरुवर की ।🙏🙏🙏