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पूज्य दंडी संन्यासी जी की समाधि
सद्गुरुदेव जी महाराज के पूज्य पिता श्री रामबली शुक्ल, संन्यास धारण के पश्चात् स्वामी श्री रामप्रसाद आश्रम जी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए। संन्यास पूर्व वे भदबा गांव के एक प्रतिष्ठित, कर्मठ ब्राह्मण के रूप में जाने जाते थे। घर में पूजा-पाठ का नियम व अन्य समस्त दैनिक कार्यों में अनुशासन का कठोरता के साथ पालन ही स्वामी जी का जीवन था। इसी अनुशासन के साथ उन्होंने बच्चों का पालन-पोषण किया, जिससे सभी बच्चे बड़े होकर समाज के बीच सम्मानित जीवन प्राप्त कर सके। गुरुदेव जी के जीवन पर स्वामी जी के पुरुषार्थी व्यक्तित्त्व का विशेष प्रभाव रहा, जिसे गुरुदेव जी ने अपने चिन्तनों में कई बार व्यक्त किया है।
महाभारत में वर्णित है-
निराशिषमनारम्भं निर्नमस्कारमस्तुतिम्।
निर्मुक्तं बन्धनैः सर्वैस्तं देवा ब्राह्मणं विदुः ॥
अर्थात् “जिसे कामनाएं न हों, जो कुछ अर्जित करने का प्रयास न करे, जिसे दूसरों से नमस्कार या सम्मान की अपेक्षा न हो, जो प्रशंसा की इच्छा न रखता हो, सभी बंधनों से मुक्त हो, उसे देवतागण, ब्राह्मण अथवा संन्यासी कहते हैं।”
मन में वैराग्यभाव उत्पन्न होते ही स्वामी जी का जीवन सहजरूप से ही सभी बन्धनों से मुक्त हो गया, जिसके उपरान्त उन्होंने गृहत्याग का निर्णय लिया और संन्यासधर्म की दीक्षा प्राप्त की। संन्यासधर्म ग्रहण करने के पश्चात् स्वामी जी त्यागपूर्ण जीवन जीते हुए, आत्मकल्याण के पथ पर निरन्तर आगे बढ़ते रहे। जीवन के अंतिम क्षणों पर सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के चिंतन से स्वामी जी, पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में आकर रहने लगे और ‘माँ’ की भक्ति को आत्मसात करके ‘माँ’ की कृपा प्राप्त की।
सिद्धाश्रम में उन्होंने 01 मार्च 2007, दिन गुरुवार, फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी पुष्यनक्षत्र पर अपने स्थूल शरीर का त्याग किया और सूक्ष्मरूप से सदा-सदा के लिए सिद्धाश्रम के वासी बन गए। लोककल्याण के हितार्थ, पूज्य दंडी संन्यासी स्वामी श्री रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधिस्थल का निर्माण सद्गुरुदेव जी महाराज के द्वारा कराया गया है, जहाँ पर भक्तजन, नित्य ही नमन-वंदन करके उनका आशीर्वाद प्राप्तकर अपने जीवन को धन्य करते हैं।
कल-कल निनादित सिद्धाश्रम सरिता ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं लहलहाते वृक्ष एवं सुन्दर पुष्पउद्यान, समाधिस्थल की शोभा को द्विगुणित करते हैं। इतना ही नहीं, वहाँ से कुछ ही दूर पर त्रिशक्ति गोशाला स्थापित है, जहाँ से रह-रहकर गौ-वंशों के रंभाने की ध्वनियाँ, वहाँ पहुँचने वाले भक्तों के मन को आनंदित कर देती हैं। समाधिस्थल पर पहुंचने वाले भक्त, जब वहाँ पर कुछ समय के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे विश्राम करते हैं, तो उनका मन शांतिकुंज में विचरण करने लगता है।
पूज्य दंडी संन्यासी स्वामी श्री रामप्रसाद आश्रम जी महाराज की समाधिस्थल पर, नित्य सुबह-शाम पूजन का क्रम सम्पन्न होता है एवं नित्यप्रति दिन में एक बार सद्गुरुदेव जी महाराज वहाँ जाकर स्वामी जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। वर्षभर में एक बार, स्वामी जी की पुण्यतिथि पर (01 मार्च) सद्गुरुदेव जी महाराज के द्वारा विशेष पूजन एवं ध्यानक्रम के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। उस समय समाधिस्थल के बाहर परिसर पर सैकड़ों की संख्या में उपस्थित गुरुभाई-बहनों व ‘माँ’ के भक्तों के द्वारा लगाए जा रहे जयकारे व भजन, वातावरण को अलौकिकता प्रदान करने वाले होते हैं।
जय माता की - जय गुरुवर की